क़तरे अरक़-ए-जिस्म के मोती की लड़ी
है पैकर-ए-नाज़ कि फूलों की छड़ी
गर्दिश में निगाह है कि बटती है हयात
जन्नत भी है आज उमीदवारों में खड़ी
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Rahat Indori
Wasi Shah
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Gulzar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
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सर-ता-ब-क़दम रुख़-ए-निगारीं है कि तन
ग़ुंचे को नसीम गुदगुदाए जैसे
किस प्यार से होती है ख़फ़ा बच्चे से
अफ़्लाक पे जब परचम-ए-शब लहराया
बद-गुमाँ हो के मिल ऐ दोस्त जो मिलना है तुझे
इसी खंडर में कहीं कुछ दिए हैं टूटे हुए
लचका लचका बदन मुजस्सम है नसीम
जुगनू
गेसू बिखरे हुए घटाएँ बे-ख़ुद
अब याद-ए-रफ़्तगाँ की भी हिम्मत नहीं रही
जो उलझी थी कभी आदम के हाथों
मेरी घुट्टी में पड़ी थी हो के हल उर्दू ज़बाँ