गेसू बिखरे हुए घटाएँ बे-ख़ुद
आँचल लटका हुआ हवाएँ बे-ख़ुद
पुर-कैफ़ शबाब से अदाएँ बे-ख़ुद
गाती हुई साँस से फ़ज़ाएँ बे-ख़ुद
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जिन की ज़िंदगी दामन तक है बेचारे फ़रज़ाने हैं
ये ज़िंदगी के कड़े कोस याद आते हैं
मैं मुद्दतों जिया हूँ किसी दोस्त के बग़ैर
शाम-ए-अयादत
शामें किसी को माँगती हैं आज भी 'फ़िराक़'
ये राज़-ओ-नियाज़ और ये समाँ ख़ल्वत का
परछाइयाँ
सोते जादू जगाने वाले दिन हैं
पाते जाना है और न खोते जाना
इश्क़ अभी से तन्हा तन्हा
अफ़्सुर्दा फ़ज़ा पे जैसे छाया हो हिरास
क़तरे अरक़-ए-जिस्म के मोती की लड़ी