दोशीज़ा-ए-बहार मुस्कुराए जैसे
मौज-ए-तसनीम गुनगुनाए जैसे
ये शान-ए-सुबुक-रवी ये ख़ुशबू-ए-बदन
बल खाती हुई नसीम गाए जैसे
Rahat Indori
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गेसू बिखरे हुए घटाएँ बे-ख़ुद
कमी न की तिरे वहशी ने ख़ाक उड़ाने में
क़ामत है कि अंगड़ाइयाँ लेती सरगम
जिस तरह असावरी के दिल की धड़कन
इस दौर में ज़िंदगी बशर की
दौर-ए-आग़ाज़-ए-जफ़ा दिल का सहारा निकला
किसी की बज़्म-ए-तरब में हयात बटती थी
बन-बासियों में जलव-ए-गुलशन ले कर
खोते हैं अगर जान तो खो लेने दे
मैं हूँ दिल है तन्हाई है
मौत का भी इलाज हो शायद
हम से क्या हो सका मोहब्बत में