धीमा धीमा सा नूर जैसे तह-ए-साज़
बढ़ता जाता है छटके तारों का गुदाज़
लेती हैं जमाहियाँ ये बातें तेरी
सरगोशियाँ जिस तरह करे आलम-ए-राज़
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Rahat Indori
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Ahmad Faraz
Anwar Masood
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
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Gulzar
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बहसें छिड़ी हुई हैं हयात-ओ-ममात की
क्या जानिए मौत पहले क्या थी
'ग़ालिब' ओ 'मीर' 'मुसहफ़ी'
ये माना ज़िंदगी है चार दिन की
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
दोशीज़ा-ए-बहार मुस्कुराए जैसे
जिस में हो याद भी तिरी शामिल
ये शोला-ए-हुस्न जैसे बजता हो सितार
रात भी नींद भी कहानी भी
देवताओं का ख़ुदा से होगा काम
मैं हूँ दिल है तन्हाई है
माँ और बहन भी और चहेती बेटी