चढ़ती हुई नद्दी है कि लहराती है
पिघली हुई बिजली है कि बल खाती है
पहलू में लहक के भेंच लेती है वो जब
क्या जाने कहाँ बहा ले जाती है
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हर साज़ से होती नहीं ये धुन पैदा
ज़रा विसाल के बाद आइना तो देख ऐ दोस्त
मैं हूँ दिल है तन्हाई है
ज़िंदगी दर्द की कहानी है
जिस तरह असावरी के दिल की धड़कन
ये माना ज़िंदगी है चार दिन की
आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरो
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
बहसें छिड़ी हुई हैं हयात-ओ-ममात की
सोते जादू जगाने वाले दिन हैं
अपने ग़म का मुझे कहाँ ग़म है
ज़ेर-ओ-बम से साज़-ए-ख़िलक़त के जहाँ बनता गया