ये माना ज़िंदगी है चार दिन की
बहुत होते हैं यारो चार दिन भी
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हम से क्या हो सका मोहब्बत में
किस प्यार से होती है ख़फ़ा बच्चे से
ऐ सोज़-ए-इश्क़ तू ने मुझे क्या बना दिया
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
वो चेहरा सुता हुआ वो हुस्न-ए-बीमार
रात भी नींद भी कहानी भी
शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो
सोते जादू जगाने वाले दिन हैं
यूँ इश्क़ की आँच खा के रंग और खिले
ग़म तिरा जल्वा-गह-ए-कौन-ओ-मकाँ है कि जो था
सितारों से उलझता जा रहा हूँ
क्या तेरे ख़याल ने भी छेड़ा है सितार