हम से क्या हो सका मोहब्बत में
ख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की
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रस्म-ओ-राह-ए-दहर क्या जोश-ए-मोहब्बत भी तो हो
'ईसा' के नफ़्स में भी ये एजाज़ नहीं
आज भी क़ाफ़िला-ए-इश्क़ रवाँ है कि जो था
शाम-ए-अयादत
बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में
आज़ादी
आवाज़ पे संगीत का होता है भरम
ज़ौक़-ए-नज़्ज़ारा उसी का है जहाँ में तुझ को
गुल हैं कि रुख़-ए-गर्म के हैं अंगारे
मेरी घुट्टी में पड़ी थी हो के हल उर्दू ज़बाँ
सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं