रस्म-ओ-राह-ए-दहर क्या जोश-ए-मोहब्बत भी तो हो

रस्म-ओ-राह-ए-दहर क्या जोश-ए-मोहब्बत भी तो हो

टूट जाती है हर इक ज़ंजीर वहशत भी तो हो

ज़िंदगी क्या मौत क्या दो करवटें हैं इश्क़ की

सोने वाले चौंक उट्ठेंगे क़यामत भी तो हो

''हरचे बादा-बाद'' के नारों से दुनिया काँप उठी

इश्क़ के इतना कोई बरगश्ता क़िस्मत भी तो हो

कार-ज़ार-ए-दहर में हर कैफ़ हर मस्ती बजा

कुछ शरीक-ए-बे-ख़ुदी रिंदाना-ए-जुरअत भी तो हो

कम नहीं अहल-ए-हवस की भी ख़याल-आराइयाँ

ये फ़ना की हद से भी बढ़ जाएँ हिम्मत भी तो हो

कुछ इशारात-ए-निहाँ हों तो निगाह-ए-नाज़ के

भाँप लेंगे हम ये महफ़िल रश्क-ए-ख़ल्वत भी तो हो

अब तो कुछ अहल-ए-रज़ा भी हो चले मायूस से

हर जफ़ा-ए-ना-रवा की कुछ निहायत भी तो हो

हर नफ़स से आए बू-ए-आतिश-ए-सय्याल-ए-इश्क़

आग वो दिल में लहू में वो हरारत भी तो हो

ये तिरे जल्वे ये चश्म-ए-शौक़ की हैरानियाँ

बर्क़-ए-हुस्न-ए-यार नज़्ज़ारे की फ़ुर्सत भी तो हो

गर्दिश-ए-दौराँ में इक दिन आ रहेगा होश भी

ख़त्म ऐ चश्म-ए-सियह ये दौर-ए-ग़फ़्लत भी तो हो

हर दिल-अफ़सुर्दा से चिंगारियाँ उड़ जाएँगी

कुछ तिरी मासूम आँखों में शरारत भी तो हो

अब वो इतना भी नहीं बेगाना-ए-वज्ह-ए-मलाल

पुर्सिश-ए-ग़म उस को आती है ज़रूरत भी तो हो

एक सी हैं अब तो हुस्न-ओ-इश्क़ की मजबूरियाँ

हम हों या तुम हो वो अहद-ए-बा-फ़राग़त भी तो हो

देख कर रंग-ए-मिज़़ाज-ए-यार क्या कहिए 'फ़िराक़'

इस में कुछ गुंजाइश-ए-शुक्र-ओ-शिकायत भी तो हो

(801) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Rasm-o-rah-e-dahr Kya Josh-e-mohabbat Bhi To Ho In Hindi By Famous Poet Firaq Gorakhpuri. Rasm-o-rah-e-dahr Kya Josh-e-mohabbat Bhi To Ho is written by Firaq Gorakhpuri. Complete Poem Rasm-o-rah-e-dahr Kya Josh-e-mohabbat Bhi To Ho in Hindi by Firaq Gorakhpuri. Download free Rasm-o-rah-e-dahr Kya Josh-e-mohabbat Bhi To Ho Poem for Youth in PDF. Rasm-o-rah-e-dahr Kya Josh-e-mohabbat Bhi To Ho is a Poem on Inspiration for young students. Share Rasm-o-rah-e-dahr Kya Josh-e-mohabbat Bhi To Ho with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.