हर जल्वे से इक दर्स-ए-नुमू लेता हूँ
लबरेज़ कई जाम-ओ-सुबू लेता हूँ
पड़ती है जब आँख तुझ पर ऐ जान-ए-बहार
संगीत की सरहदों को छू लेता हूँ
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आवाज़ पे संगीत का होता है भरम
किस दर्जा सुकूँ-नुमा हैं अबरू के हिलाल
क्या जानिए मौत पहले क्या थी
ऐ मअनी-ए-काइनात मुझ में आ जा
दौर-ए-आग़ाज़-ए-जफ़ा दिल का सहारा निकला
किस लिए कम नहीं है दर्द-ए-फ़िराक़
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
आँखें हैं कि पैग़ाम मोहब्बत वाले
मुखड़ा देखें तो माह-पारे छुप जाएँ
अफ़्लाक पे जब परचम-ए-शब लहराया
जहाँ में थी बस इक अफ़्वाह तेरे जल्वों की
सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं