हर साँस में गुलज़ार से खिल जाते थे
हर लम्हे में जन्नत की हवा खाते थे
क्या तुझ को मोहब्बत के वो अय्याम हैं याद
जब पर्दा-ए-शब बजते थे दिन गाते थे
Allama Iqbal
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Habib Jalib
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(677) Peoples Rate This
जुनून-ए-कारगर है और मैं हूँ
तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो
गेसू बिखरे हुए घटाएँ बे-ख़ुद
शाम-ए-अयादत
तुम्हें क्यूँकर बताएँ ज़िंदगी को क्या समझते हैं
दौर-ए-आग़ाज़-ए-जफ़ा दिल का सहारा निकला
हिज्र-ओ-विसाल-ए-यार का पर्दा उठा दिया
हाथ आए तो वही दामन-ए-जानाँ हो जाए
हर नाला तिरे दर्द से अब और ही कुछ है
लाई न ऐसों-वैसों को ख़ातिर में आज तक
खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही
बहसें छिड़ी हुई हैं हयात-ओ-ममात की