लाई न ऐसों-वैसों को ख़ातिर में आज तक
ऊँची है किस क़दर तिरी नीची निगाह भी
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ख़ुद मुझ को भी ता-देर ख़बर हो नहीं पाई
तूर था का'बा था दिल था जल्वा-ज़ार-ए-यार था
समझता हूँ कि तू मुझ से जुदा है
शामें किसी को माँगती हैं आज भी 'फ़िराक़'
रोने वाले हुए चुप हिज्र की दुनिया बदली
ये ज़िल्लत-ए-इश्क़ तेरे हाथों
छलक के कम न हो ऐसी कोई शराब नहीं
जौर-ओ-बे-मेहरी-ए-इग़्माज़ पे क्या रोता है
क्या जानिए मौत पहले क्या थी
ये मौत-ओ-अदम कौन-ओ-मकाँ और ही कुछ है
जुदाई
अब अक्सर चुप चुप से रहें हैं यूँही कभू लब खोलें हैं