छलक के कम न हो ऐसी कोई शराब नहीं
निगाह-ए-नर्गिस-ए-राना तिरा जवाब नहीं
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इश्क़ की मायूसियों में सोज़-ए-पिन्हाँ कुछ नहीं
क्या तेरे ख़याल ने भी छेड़ा है सितार
मैं मुद्दतों जिया हूँ किसी दोस्त के बग़ैर
जिन की ज़िंदगी दामन तक है बेचारे फ़रज़ाने हैं
अब याद-ए-रफ़्तगाँ की भी हिम्मत नहीं रही
किस लिए कम नहीं है दर्द-ए-फ़िराक़
अब तो उन की याद भी आती नहीं
तबीअत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
मज़हब की ख़राबी है न अख़्लाक़ की पस्ती
सुन युग-ओ-युग की कहानी न उठा
इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में
तेज़ एहसास-ए-ख़ुदी दरकार है