इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में
ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिन से एक रात
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आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरो
शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो
आई है कुछ न पूछ क़यामत कहाँ कहाँ
बद-गुमाँ हो के मिल ऐ दोस्त जो मिलना है तुझे
आँखें हैं कि पैग़ाम मोहब्बत वाले
तबीअत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
ज़ुल्फ़ों से फ़ज़ाओं में अदाहट का समाँ
तू याद आया तिरे जौर-ओ-सितम लेकिन न याद आए
खोते हैं अगर जान तो खो लेने दे
क्या जानिए मौत पहले क्या थी
सानी नहीं तेरा न कोई तेरी मिसाल
सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं