क्या तेरे ख़याल ने भी छेड़ा है सितार
सीने में उड़ रहे हैं नग़्मों के शरार
ध्यान आते ही साफ़ बजने लगते हैं कान
है याद तेरी वो खनक वो झंकार
Gulzar
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वो चेहरा सुता हुआ वो हुस्न-ए-बीमार
रोने वाले हुए चुप हिज्र की दुनिया बदली
'ग़ालिब' ओ 'मीर' 'मुसहफ़ी'
पनघट पे गगरियाँ छलकने का ये रंग
अब तो उन की याद भी आती नहीं
हाथ आए तो वही दामन-ए-जानाँ हो जाए
जुगनू
कौन ये ले रहा है अंगड़ाई
वो पेंग है रूप में कि बिजली लहराए
साग़र कफ़-ए-दस्त में सुराही ब-बग़ल
देवताओं का ख़ुदा से होगा काम
कम से कम मौत से ऐसी मुझे उम्मीद नहीं