'ग़ालिब' ओ 'मीर' 'मुसहफ़ी'
हम भी 'फ़िराक़' कम नहीं
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कम से कम मौत से ऐसी मुझे उम्मीद नहीं
वो चुप-चाप आँसू बहाने की रातें
इश्क़ अभी से तन्हा तन्हा
रात भी नींद भी कहानी भी
सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़'
किसी की बज़्म-ए-तरब में हयात बटती थी
नर्म फ़ज़ा की करवटें दिल को दुखा के रह गईं
इश्क़ अब भी है वो महरम-ए-बे-गाना-नुमा
शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास
तुम्हें क्यूँकर बताएँ ज़िंदगी को क्या समझते हैं
जिस तरह नद्दी में एक तारा लहराए
जिन की ज़िंदगी दामन तक है बेचारे फ़रज़ाने हैं