सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़'
क़ाफ़िले बसते गए हिन्दोस्ताँ बनता गया
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
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Jaun Eliya
Rahat Indori
Allama Iqbal
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
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बन-बासियों में जलव-ए-गुलशन ले कर
ख़ुद मुझ को भी ता-देर ख़बर हो नहीं पाई
पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए
बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में
सोते जादू जगाने वाले दिन हैं
ऐ रूप की लक्ष्मी ये जल्वों का राग
लचका लचका बदन मुजस्सम है नसीम
लुत्फ़-सामाँ इताब-ए-यार भी है
अब याद-ए-रफ़्तगाँ की भी हिम्मत नहीं रही
निखरे बदन का मुस्कुराना है है
कमी न की तिरे वहशी ने ख़ाक उड़ाने में
क़ुर्ब ही कम है न दूरी ही ज़ियादा लेकिन