लचका लचका बदन मुजस्सम है नसीम
महका महका वो चेहरा साँसों की शमीम
दोशीज़गि-ए-जमाल सुब्ह-ए-जन्नत
गाते हुए नर्म-गाम मौज-ए-तसनीम
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Habib Jalib
Rahat Indori
Anwar Masood
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ख़राब हो के भी सोचा किए तिरे महजूर
महताब में सुर्ख़ अनार जैसे छूटे
आँखें हैं कि पैग़ाम मोहब्बत वाले
तूर था का'बा था दिल था जल्वा-ज़ार-ए-यार था
मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले
तू याद आया तिरे जौर-ओ-सितम लेकिन न याद आए
आँखों में वो रस जो पत्ती पत्ती धो जाए
रक्षा-बंधन की सुब्ह रस की पुतली
ये माना ज़िंदगी है चार दिन की
एक रंगीनी ज़ाहिर है गुलिस्ताँ में अगर
मय-कदे में आज इक दुनिया को इज़्न-ए-आम था
किसी की बज़्म-ए-तरब में हयात बटती थी