किस लिए कम नहीं है दर्द-ए-फ़िराक़
अब तो वो ध्यान से उतर भी गए
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हम से क्या हो सका मोहब्बत में
किस प्यार से होती है ख़फ़ा बच्चे से
खोते हैं अगर जान तो खो लेने दे
मय-कदे में आज इक दुनिया को इज़्न-ए-आम था
ख़राब हो के भी सोचा किए तिरे महजूर
हर नाला तिरे दर्द से अब और ही कुछ है
कुछ न कुछ इश्क़ की तासीर का इक़रार तो है
मैं मुद्दतों जिया हूँ किसी दोस्त के बग़ैर
ये मौत-ओ-अदम कौन-ओ-मकाँ और ही कुछ है
जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है
हाथ आए तो वही दामन-ए-जानाँ हो जाए
आँखों में वो रस जो पत्ती पत्ती धो जाए