तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो
तुम को देखें कि तुम से बात करें
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Gulzar
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Rahat Indori
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आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरो
माइल-ए-बेदाद वो कब था 'फ़िराक़'
वक़्त-ए-पीरी दोस्तों की बे-रुख़ी का क्या गिला
मैं हूँ दिल है तन्हाई है
खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही
अफ़्सुर्दा फ़ज़ा पे जैसे छाया हो हिरास
लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है
धीमा धीमा सा नूर जैसे तह-ए-साज़
बहुत दिनों में मोहब्बत को ये हुआ मा'लूम
किस प्यार से होती है ख़फ़ा बच्चे से
ख़राब हो के भी सोचा किए तिरे महजूर
कोई आया न आएगा लेकिन