उसी की शरह है ये उठते दर्द का आलम
जो दास्ताँ थी निहाँ तेरे आँख उठाने में
Anwar Masood
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Gulzar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1230) Peoples Rate This
रस्म-ओ-राह-ए-दहर क्या जोश-ए-मोहब्बत भी तो हो
तिरी निगाह सहारा न दे तो बात है और
हिण्डोला
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
छलक के कम न हो ऐसी कोई शराब नहीं
पाते जाना है और न खोते जाना
ज़ेर-ओ-बम से साज़-ए-ख़िलक़त के जहाँ बनता गया
जुदाई
ऐ मअनी-ए-काइनात मुझ में आ जा
हर जल्वे से इक दर्स-ए-नुमू लेता हूँ
वो रातों-रात 'सिरी-कृष्ण' को उठाए हुए
ज़रा विसाल के बाद आइना तो देख ऐ दोस्त