मुखड़ा देखें तो माह-पारे छुप जाएँ
ख़ुर्शीद की आँख के शरारे छुप जाएँ
रह जाना वो मुस्कुरा के तेरा कल रात
जैसे कुछ झिलमिला के तारे छुप जाएँ
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
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Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
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किस प्यार से होती है ख़फ़ा बच्चे से
नर्म फ़ज़ा की करवटें दिल को दुखा के रह गईं
ऐ मअनी-ए-काइनात मुझ में आ जा
असर भी ले रहा हूँ तेरी चुप का
ज़ब्त कीजे तो दिल है अँगारा
दीदार में इक-तरफ़ा दीदार नज़र आया
पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए
लाई न ऐसों-वैसों को ख़ातिर में आज तक
छलक के कम न हो ऐसी कोई शराब नहीं
हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा है
पाल ले इक रोग नादाँ ज़िंदगी के वास्ते
ज़िंदगी क्या है आज इसे ऐ दोस्त