असर भी ले रहा हूँ तेरी चुप का
तुझे क़ाइल भी करता जा रहा हूँ
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परछाइयाँ
ख़राब हो के भी सोचा किए तिरे महजूर
हिण्डोला
कमी न की तिरे वहशी ने ख़ाक उड़ाने में
अफ़्लाक पे जब परचम-ए-शब लहराया
खोते हैं अगर जान तो खो लेने दे
रोने वाले हुए चुप हिज्र की दुनिया बदली
आँखों में जो बात हो गई है
पाते जाना है और न खोते जाना
कहाँ का वस्ल तन्हाई ने शायद भेस बदला है
अब अक्सर चुप चुप से रहें हैं यूँही कभू लब खोलें हैं
जिस तरह असावरी के दिल की धड़कन