जिस तरह असावरी के दिल की धड़कन
जैसे पिछले पहर का महका हुआ बन
जैसे खिलते कँवल के सीने की उमंग
छलका पड़ता है मद में डूबा जौबन
Habib Jalib
Allama Iqbal
Wasi Shah
Rahat Indori
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Gulzar
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सोते जादू जगाने वाले दिन हैं
किसी की बज़्म-ए-तरब में हयात बटती थी
इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में
इश्क़ फिर इश्क़ है जिस रूप में जिस भेस में हो
गेसू बिखरे हुए घटाएँ बे-ख़ुद
अब दौर-ए-आसमाँ है न दौर-ए-हयात है
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें
नभ-मंडल गूँजता है तेरे जस से
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
इनायत की करम की लुत्फ़ की आख़िर कोई हद है
बहुत हसीन है दोशीज़गी-ए-हुस्न मगर
कमी न की तिरे वहशी ने ख़ाक उड़ाने में