माँ और बहन भी और चहेती बेटी
घर की रानी भी और जीवन साथी
फिर भी वो कामनी सरासर देवी
और सेज पे बेसवा वो रस की पुतली
Javed Akhtar
Anwar Masood
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
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ज़ेर-ओ-बम से साज़-ए-ख़िलक़त के जहाँ बनता गया
दिल-दुखे रोए हैं शायद इस जगह ऐ कू-ए-दोस्त
तुम्हें क्यूँकर बताएँ ज़िंदगी को क्या समझते हैं
कोई पैग़ाम-ए-मोहब्बत लब-ए-एजाज़ तो दे
पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए
दीदार में इक-तरफ़ा दीदार नज़र आया
वो पेंग है रूप में कि बिजली लहराए
पनघट पे गगरियाँ छलकने का ये रंग
चढ़ती हुई नद्दी है कि लहराती है
खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही
ज़रा विसाल के बाद आइना तो देख ऐ दोस्त
किसी की बज़्म-ए-तरब में हयात बटती थी