मैं देर तक तुझे ख़ुद ही न रोकता लेकिन
तू जिस अदा से उठा है उसी का रोना है
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सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं
बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में
गेसू बिखरे हुए घटाएँ बे-ख़ुद
फूलों की सुहाग सेज ये जोबन रस
जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है
देख रफ़्तार-ए-इंक़लाब 'फ़िराक़'
एक रंगीनी ज़ाहिर है गुलिस्ताँ में अगर
आँखों में जो बात हो गई है
जुदाई
कोमल पद-गामिनी की आहट तो सुनो
रोने वाले हुए चुप हिज्र की दुनिया बदली
पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए