फूलों की सुहाग सेज ये जोबन रस
सोते में सुहागनी लुटाती हुई जस
करवट करवट है लहलहाती जन्नत
ये रात ये कुछ हिलते हुए रूप-कलस
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हर जल्वे से इक दर्स-ए-नुमू लेता हूँ
शाम-ए-अयादत
परछाइयाँ
रक्षा-बंधन की सुब्ह रस की पुतली
मौत का भी इलाज हो शायद
कौन ये ले रहा है अंगड़ाई
धीमा धीमा सा नूर जैसे तह-ए-साज़
दिल-दुखे रोए हैं शायद इस जगह ऐ कू-ए-दोस्त
हाथ आए तो वही दामन-ए-जानाँ हो जाए
जौर-ओ-बे-मेहरी-ए-इग़्माज़ पे क्या रोता है
तू याद आया तिरे जौर-ओ-सितम लेकिन न याद आए
आवाज़ पे संगीत का होता है भरम