जिस में हो याद भी तिरी शामिल
हाए उस बे-ख़ुदी को क्या कहिए
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बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
माइल-ए-बेदाद वो कब था 'फ़िराक़'
देवताओं का ख़ुदा से होगा काम
वो चुप-चाप आँसू बहाने की रातें
लाई न ऐसों-वैसों को ख़ातिर में आज तक
इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में
यूँ इश्क़ की आँच खा के रंग और खिले
मैं मुद्दतों जिया हूँ किसी दोस्त के बग़ैर
कम से कम मौत से ऐसी मुझे उम्मीद नहीं
समझता हूँ कि तू मुझ से जुदा है
सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं
गेसू बिखरे हुए घटाएँ बे-ख़ुद