क़ामत है कि अंगड़ाइयाँ लेती सरगम
हो रक़्स में जैसे रंग-ओ-बू का आलम
जगमग जगमग है शब्नमिस्तान-ए-इरम
या क़ौस-ए-क़ुज़ह लचक रही है पैहम
Wasi Shah
Javed Akhtar
Rahat Indori
Gulzar
Parveen Shakir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
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मैं हूँ दिल है तन्हाई है
बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
उसी की शरह है ये उठते दर्द का आलम
हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा है
इश्क़ अब भी है वो महरम-ए-बे-गाना-नुमा
कोमल पद-गामिनी की आहट तो सुनो
सोते जादू जगाने वाले दिन हैं
प्रेमी को बुख़ार उठ नहीं सकती है पलक
वक़्त-ए-ग़ुरूब आज करामात हो गई
मंज़िलें गर्द के मानिंद उड़ी जाती हैं