तू हाथ को जब हाथ में ले लेती है
दुख दर्द ज़माने के मिटा देती है
संसार के तपते हुए वीराने में
सुख शांत की गोया तू हरी खेती है
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Anwar Masood
Habib Jalib
Javed Akhtar
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Jaun Eliya
Parveen Shakir
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जो रंग उड़ा वो रंग आख़िर लाया
बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में
ग़म तिरा जल्वा-गह-ए-कौन-ओ-मकाँ है कि जो था
तेरे आने की क्या उमीद मगर
पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए
जिस में हो याद भी तिरी शामिल
कहती हैं यही तेरी निगाहें ऐ दोस्त
लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है
जहाँ में थी बस इक अफ़्वाह तेरे जल्वों की
जब चाँद की वादियों से नग़्मे बरसें
किस दर्जा सुकूँ-नुमा हैं अबरू के हिलाल
मैं हूँ दिल है तन्हाई है