जब चाँद की वादियों से नग़्मे बरसें
आकाश की घाटियों में साग़र उछलें
अमृत में धुली हुई रात ऐ काश तिरे
पा-ए-रंगीं की चाप ऐसे में सुनें
Gulzar
Jaun Eliya
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
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कोई आया न आएगा लेकिन
रोने वाले हुए चुप हिज्र की दुनिया बदली
इनायत की करम की लुत्फ़ की आख़िर कोई हद है
ग़ुंचे को नसीम गुदगुदाए जैसे
ये ज़िंदगी के कड़े कोस याद आते हैं
लुत्फ़-सामाँ इताब-ए-यार भी है
तू याद आया तिरे जौर-ओ-सितम लेकिन न याद आए
शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो
तेज़ एहसास-ए-ख़ुदी दरकार है
समझता हूँ कि तू मुझ से जुदा है
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
निगाह-ए-नाज़ ने पर्दे उठाए हैं क्या क्या