दिल की बुनियाद पे ता'मीर कर ऐवान-ए-हयात
क़स्र-ए-शाही तो ज़रा देर में ढह जाते हैं
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का'बे में हो या बुत-ख़ाने में होने को तो सर ख़म होता है
चमन अपने रंग में मस्त है कोई ग़म-गुसार-ए-दिगर नहीं
एक ख़्वाब-ओ-ख़याल है दुनिया
आरज़ू हसरत-ए-नाकाम से आगे न बढ़ी
चला हूँ अपनी मंज़िल की तरफ़ तो शादमाँ हो कर
फूलों को गुलिस्ताँ में कब रास बहार आई
सर-ए-महफ़िल हमारे दिल को लूटा चश्म-ए-साक़ी ने
हैं ये जज़्बात मिरे दर्द भरे दिल के फ़िगार
क़दम क़दम पे दोनों जुर्म-ए-इश्क़ में शरीक हैं
हदीस-ए-सोज़-ओ-साज़-ए-शम्-ओ-परवाना नहीं कहते
हसरत-ए-दिल ना-मुकम्मल है किताब-ए-ज़िंदगी
जफ़ा-ए-यार को हम लुत्फ़-ए-यार कहते हैं