फूलों को गुलिस्ताँ में कब रास बहार आई
काँटों को मिला जब से एजाज़-ए-मसीहाई
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Anwar Masood
Parveen Shakir
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(778) Peoples Rate This
साक़ी ने निगाहों से पिला दी है ग़ज़ब की
काबा भी घर अपना है सनम-ख़ाना भी अपना
अजीब कश्मकश है कैसे हर्फ़-ए-मुद्दआ कहूँ
एक ख़्वाब-ओ-ख़याल है दुनिया
आरज़ू हसरत-ए-नाकाम से आगे न बढ़ी
किसी से शिकवा-ए-महरूमी-ए-नियाज़ न कर
दीवाने को मजाज़-ओ-हक़ीक़त से क्या ग़रज़
दिल की बुनियाद पे ता'मीर कर ऐवान-ए-हयात
शिकस्त-ए-दिल की हर आवाज़ हश्र-आसार होती है
छुप गया दिन क़दम बढ़ा राही
जफ़ा-ए-यार को हम लुत्फ़-ए-यार कहते हैं
जुरअत-ए-इश्क़ हवस-कार हुई जाती है