साक़ी ने निगाहों से पिला दी है ग़ज़ब की
रिंदान-ए-अज़ल देखिए कब होश में आएँ
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एक ख़्वाब-ओ-ख़याल है दुनिया
शिकस्त-ए-दिल की हर आवाज़ हश्र-आसार होती है
दिल है मिरा रंगीनी-ए-आग़ाज़ पे माइल
कुछ काम तो आया दिल-ए-नाकाम हमारा
दिल की बुनियाद पे ता'मीर कर ऐवान-ए-हयात
उन पे क़ुर्बान हर ख़ुशी कर दी
दिल मिरा शाकी-ए-जफ़ा न हुआ
शोहरत-ए-तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ आम हुई जाती है
काबा भी घर अपना है सनम-ख़ाना भी अपना
का'बे में हो या बुत-ख़ाने में होने को तो सर ख़म होता है
ग़म-ए-जानाँ से रंगीं और कोई ग़म नहीं होता