एक ख़्वाब-ओ-ख़याल है दुनिया
ए'तिबार-ए-नज़र को क्या कहिए
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जुरअत-ए-इश्क़ हवस-कार हुई जाती है
मायूस दिलों को अब छेड़ो भी तो क्या हासिल
इक तेरा आसरा है फ़क़त ऐ ख़याल-ए-दोस्त
ग़म-ओ-अलम से जो ताबीर की ख़ुशी मैं ने
दीवाने को मजाज़-ओ-हक़ीक़त से क्या ग़रज़
शोहरत-ए-तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ आम हुई जाती है
परतव-ए-हुस्न से ज़र्रे भी बने आईने
फ़ज़ा का तंग होना फ़ितरत-ए-आज़ाद से पूछो
उन पे क़ुर्बान हर ख़ुशी कर दी
अजीब कश्मकश है कैसे हर्फ़-ए-मुद्दआ कहूँ
साक़ी ने निगाहों से पिला दी है ग़ज़ब की
दिल है मिरा रंगीनी-ए-आग़ाज़ पे माइल