जीवन Poetry (page 8)

सर-निगूँ कर ही दिया शौक़-ए-जबीं-साई ने

शकील बदायुनी

नज़र-नवाज़ नज़ारों में जी नहीं लगता

शकील बदायुनी

ला रहा है मय कोई शीशे में भर के सामने

शकील बदायुनी

इस दर्जा बद-गुमाँ हैं ख़ुलूस-ए-बशर से हम

शकील बदायुनी

ग़म-ए-हयात भी आग़ोश-ए-हुस्न-ए-यार में है

शकील बदायुनी

आँखों से दूर सुब्ह के तारे चले गए

शकील बदायुनी

ये जल्वा-गाह-ए-नाज़ तमाशाइयों से है

शकेब जलाली

समझ सको तो ये तिश्ना-लबी समुंदर है

शकेब जलाली

मौज-ए-सबा रवाँ हुई रक़्स-ए-जुनूँ भी चाहिए

शकेब जलाली

ग़म-ए-हयात की लज़्ज़त बदलती रहती है

शकेब जलाली

न दिन पहाड़ लगे अब न रात भारी लगे

शकेब बनारसी

न दिन ही चैन से गुज़रा न कोई रात मिरी

शाइक़ मुज़फ़्फ़रपुरी

जी उठूँ फिर कर अगर तू एक बोसा दे मुझे

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

आब-ए-हयात जा के किसू ने पिया तो क्या

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

किस सितमगर का गुनाहगार हूँ अल्लाह अल्लाह

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

आब-ए-हयात जा के किसू ने पिया तो क्या

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

बाग़ का बाग़ उजड़ गया कोई कहो पुकार कर

शहज़ाद अहमद

ज़मीं से ता-ब-फ़लक धुँद की ख़ुदाई है

शहरयार

दाम-ए-उल्फ़त से छूटती ही नहीं

शहरयार

वो एक लम्हा-ए-रफ़्ता भी क्या बुला लाया

शहराम सर्मदी

ग़ुबार-ए-दर्द में राह-ए-नजात ऐसा ही

शहराम सर्मदी

बरसात का उधर है दिमाग़ आसमान पर

शहूद आलम आफ़ाक़ी

कभी जो मारका ख़्वाबों से रत-जगों का हुआ

शहनाज़ नूर

मेज़ पे चेहरा ज़ुल्फ़ें काग़ज़ पर

शहनवाज़ ज़ैदी

मजमा' मिरे हिसार में सैलानियों का है

शाहिद मीर

इक सब्ज़ रंग बाग़ दिखाया गया मुझे

शाहिद मीर

हर मरहले से यूँ तो गुज़र जाएगी ये शाम

शाहिद माहुली

सियाह सफ़्हा-ए-हस्ती पे मैं उभर न सका

शाहिद कलीम

नुक़ूश-ए-रहगुज़र-ए-शौक़ सब मिटा देना

शाहिद इश्क़ी

बदन के रूप का एजाज़ अंग अंग थी वो

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

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