परीक्षा Poetry (page 4)

तमाम नूर-ए-तजल्ली तमाम रंग-ए-चमन

दर्शन सिंह

अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

उज़्र उन की ज़बान से निकला

दाग़ देहलवी

साफ़ कब इम्तिहान लेते हैं

दाग़ देहलवी

खुलता नहीं है राज़ हमारे बयान से

दाग़ देहलवी

अब वो ये कह रहे हैं मिरी मान जाइए

दाग़ देहलवी

हमारे सब्र का इक इम्तिहान बाक़ी है

चित्रांश खरे

जो तुझे इम्तिहान देता है

बेख़ुद देहलवी

ऐसा बना दिया तुझे क़ुदरत ख़ुदा की है

बेख़ुद देहलवी

अदू को देख के जब वो इधर को देखते हैं

बेख़ुद देहलवी

ग़म्ज़ा-ए-मा'शूक़ मुश्ताक़ों को दिखलाती है तेग़

बयान मेरठी

तेग़ चढ़ उस की सान पर आई

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

तबाह हो के भी इक अपनी आन बाक़ी है

बाक़र मेहदी

इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल

ज़फ़र

मो'तबर से रिश्तों का साएबान रहने दो

अज़रा नक़वी

वही दाग़-ए-लाला की बात है कि ब-नाम-ए-हुस्न उधर गई

अज़ीज़ हामिद मदनी

क़ज़ा का तीर था कोई कमान से निकल गया

अज़हर अदीब

फ़ज़ा-ए-नीलगूँ का ध्यान छोड़ दे

अज़हर अब्बास

बड़ा कठिन है रास्ता जो आ सको तो साथ दो

अता शाद

रफ़ीक़ दोस्त मुहिब मुझ को शाक़ सब ही थे

असलम हनीफ़

मैं सोचता हूँ कहीं तू ख़फ़ा न हो जाए

असलम फ़र्रुख़ी

तमाम खेल-तमाशों के दरमियान वही

असलम इमादी

ये दास्तान-ए-दिल है क्या हो अदा ज़बाँ से

आरज़ू लखनवी

धूप छाँव के दरमियाँ

अरशद कमाल

गर दिल में कर के सैर-ए-दिल-ए-दाग़-दार देख

अरशद अली ख़ान क़लक़

असर मिरी ज़बान में नहीं रहा

अक़ील शादाब

देखा जो मर्ग तो मरना ज़ियाँ न था

अनवर देहलवी

चाहे तू शौक़ से मुझे वहशत-ए-दिल शिकार कर

अंजुम ख़लीक़

कुछ है जो ये गुमान न होता तो ठीक था

अमजद शहज़ाद

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