जान Poetry (page 65)

नहीं सुनता नहीं आता नहीं बस मेरा चलता है

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

जान अपनी चली जाए हे जाए से कसू की

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

हर आन जल्वा नई आन से है आने का

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

ग़ैर के दिल पे तू ऐ यार ये क्या बाँधे है

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

गली से तिरी जो कि ऐ जान निकला

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

दोश-ब-दोश दोश था मुझ से बुत-ए-करिश्मा-कोश

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

दिलबर ये वो है जिस ने दिल को दग़ा दिया है

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

दिल तो हाज़िर है अगर कीजिए फिर नाज़ से रम्ज़

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

मुद्दआ'-ओ-आरज़ू शौक़-ए-तमन्ना आप हैं

अब्दुल मन्नान तरज़ी

मिरी निगाह को जल्वों का हौसला दे दो

अब्दुल मन्नान तरज़ी

क्या यहाँ देखिए क्या वहाँ देखिए

अब्दुल मन्नान तरज़ी

ख़ून जब अश्क में ढलता है ग़ज़ल होती है

अब्दुल मन्नान तरज़ी

हर आन नई शान है हर लम्हा नया है

अब्दुल मन्नान तरज़ी

वो है हैरत-फ़ज़ा-ए-चश्म-ए-मा'नी सब नज़ारों में

अब्दुल मजीद सालिक

ग़म के हाथों मिरे दिल पर जो समाँ गुज़रा है

अब्दुल मजीद सालिक

जाना कहाँ है और कहाँ जा रहे हैं हम

अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद

क्या बात है ऐ जान-ए-सुख़न बात किए जा

अब्दुल हमीद अदम

फिर रग-शो'ला-ए-जाँ-सोज़ में नश्तर गुज़रा

अब्दुल हादी वफ़ा

उस से उम्मीद-ए-वफ़ा ऐ दिल-ए-नाशाद न कर

अब्दुल अलीम आसि

ईद उस परी-वश की

अब्दुल अहद साज़

आवाज़ के मोती

अब्दुल अहद साज़

सोच कर भी क्या जाना जान कर भी क्या पाया

अब्दुल अहद साज़

खुली जब आँख तो देखा कि दुनिया सर पे रक्खी है

अब्दुल अहद साज़

जीतने मारका-ए-दिल वो लगातार गया

अब्दुल अहद साज़

अभी उस की ज़रूरत थी

अब्बास ताबिश

ये किस के ख़ौफ़ का गलियों में ज़हर फैल गया

अब्बास ताबिश

नींदों का एक आलम-ए-असबाब और है

अब्बास ताबिश

कोई टकरा के सुबुक-सर भी तो हो सकता है

अब्बास ताबिश

ऐसे तो कोई तर्क सुकूनत नहीं करता

अब्बास ताबिश

वफ़ादारी पे दे दी जान ग़द्दारी नहीं आई

अब्बास दाना

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