जान Poetry (page 2)

पूछ न हम से कैसे तुझ तक नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ लाए हम

ज़ुबैर रिज़वी

जुनूँ शोला-सामाँ ख़िरद शबनम-अफ़्शाँ

ज़ियाउद्दीन अहमद शकेब

ज़र्द पत्ते थे हमें और क्या कर जाना था

ज़िया ज़मीर

उस को जाते हुए देखा था पुकारा था कहाँ

ज़िया ज़मीर

तक रहा है तू आसमान में क्या

ज़िया ज़मीर

जाँ का दुश्मन है मगर जान से प्यारा भी है

ज़िया ज़मीर

इक दर्द का सहरा है सिमटता ही नहीं है

ज़िया ज़मीर

ऐ दिल-नशीं तलाश तिरी कू-ब-कू न थी

ज़िया जालंधरी

लो आज समुंदर के किनारे पे खड़ा हूँ

ज़िया फ़तेहाबादी

ज़ेहरा ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है

ज़ेहरा निगाह

ये ख़ाल-ओ-ख़द मिरे अपने

ज़ेहरा निगाह

डाकू

ज़ेहरा निगाह

ख़ुश जो आए थे पशेमान गए

ज़ेहरा निगाह

एक तेरा ग़म जिस को राह-ए-मो'तबर जानें

ज़ेहरा निगाह

बस्ती में कुछ लोग निराले अब भी हैं

ज़ेहरा निगाह

बॉर्डर-लाइन

ज़ेहरा अलवी

ज़ैतून का दरख़्त

ज़ीशान साहिल

नज़्म

ज़ीशान साहिल

जवाहर-लाल यूनवर्सिटी के तलबा के लिए

ज़ीशान साहिल

जंग के दिनों में

ज़ीशान साहिल

दिल मुज़्तरिब है और परेशान जिस्म है

ज़ीशान साहिल

कहाँ बशारत-ए-फ़स्ल-ए-बहार लाई थी

ज़िशान इलाही

हम बे-घरों के दिल में जगाती है डर गली

ज़िशान इलाही

कब तक वो मोहब्बत को निभाता नज़र आता

ज़ीशान साजिद

काम इतने हैं कि आराम नहीं जानते हैं

ज़ीशान साजिद

दीवार-ओ-दर थे जान सराए निकल गए

ज़ीशान साजिद

फ़ैसला क्या हो जान-ए-बिस्मिल का

ज़ेबा

ऐसी तश्बीह फ़क़त हुस्न की बदनामी है

ज़ेबा

बड़े अज़ाब में हूँ मुझ को जान भी है अज़ीज़

ज़ेब ग़ौरी

सितमगरों का तरीक़-ए-जफ़ा नहीं जाता

ज़ेब ग़ौरी

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