उत्पीड़न Poetry (page 5)

ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं

फ़ानी बदायुनी

ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं

फ़ानी बदायुनी

मर कर तिरे ख़याल को टाले हुए तो हैं

फ़ानी बदायुनी

कुछ बस ही न था वर्ना ये इल्ज़ाम न लेते

फ़ानी बदायुनी

दिल की हर लर्ज़िश-ए-मुज़्तर पे नज़र रखते हैं

फ़ानी बदायुनी

ऐ मौत तुझ पे उम्र-ए-अबद का मदार है

फ़ानी बदायुनी

तौक़-ओ-दार का मौसम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मदह

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

बे-दम हुए बीमार दवा क्यूँ नहीं देते

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

इन उजड़ी बस्तियों का कोई तो निशाँ रहे

एज़ाज़ अहमद आज़र

मिल सकेगी अब भी दाद-ए-आबला-पाई तो क्या

एजाज़ सिद्दीक़ी

दुनिया सबब-ए-शोरिश-ए-ग़म पूछ रही है

एजाज़ सिद्दीक़ी

नक़्श-बर-आब हो गया हूँ मैं

एजाज़ रहमानी

बाग़-ए-जहाँ के गुल हैं या ख़ार हैं तो हम हैं

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

कब तक करेंगे जब्र दिल-ए-ना-सुबूर पर

बेख़ुद देहलवी

इक बे-वफ़ा को प्यार किया हाए क्या किया

बहज़ाद लखनवी

इश्क़-ए-सितम-परस्त क्या हुस्न-ए-सितम-शिआ'र क्या

बासित भोपाली

हयात आज भी कनीज़ है हुज़ूर-ए-जब्र में

बशीर बद्र

मिरी नज़र में ख़ाक तेरे आइने पे गर्द है

बशीर बद्र

गिरफ़्त-ए-ज़ीस्त में हूँ क़ैद-ए-बे-हिसार में हूँ

बशीर अहमद बशीर

मुझे कल अचानक ख़याल आ गया आसमाँ खो न जाए

अज़्म बहज़ाद

सोज़िश-ए-ग़म के सिवा काहिश-ए-फ़ुर्क़त के सिवा

अज़ीज़ वारसी

नाला-ए-बे-आसमाँ

अज़ीज़ क़ैसी

सफ़र भी जब्र है नाचार करना पड़ता है

अतहर नासिक

मुझे जाना है इक दिन

असरार-उल-हक़ मजाज़

अँधेरी रात का मुसाफ़िर

असरार-उल-हक़ मजाज़

अदावतों का ये उस को सिला दिया हम ने

असरा रिज़वी

दश्त मरऊब है कितना मिरी वीरानी से

असलम महमूद

लिबास-ए-गुल में वो ख़ुशबू के ध्यान से निकला

असलम बदर

मगर नहीं था फ़क़त 'मीर' ख़्वार मैं भी था

अासिफ़ जमाल

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