जाओ Poetry (page 27)

बड़े नादान थे हम रेत को आब-ए-रवाँ समझे

असअ'द बदायुनी

अभी ज़मीन को सौदा बहुत सरों का है

असअ'द बदायुनी

कुछ कहते कहते इशारों में शर्मा के किसी का रह जाना

आरज़ू लखनवी

मासूम नज़र का भोला-पन ललचा के लुभाना क्या जाने

आरज़ू लखनवी

आँख उन से मिरी मिली थी कभी

अरुण कुमार आर्य

हमारी महफ़िलों में बे-हिजाब आने से क्या होगा

अर्शी रामपुरी

बे-ज़बानों को भी गोयाई सिखाना चाहिए

अरशद अली ख़ान क़लक़

मेहर ओ महताब को मेरे ही निशाँ जानती है

अरशद अब्दुल हमीद

मैं क्यूँ भूल जाऊँ

अर्श मलसियानी

हयूले

आरिफ़ अब्दुल मतीन

कहाँ मुमकिन है पोशीदा ग़म-ए-दिल का असर होना

अनवरी जहाँ बेगम हिजाब

मुश्ताक़ ब-दस्तूर ज़माना है तुम्हारा

अनवर शऊर

इज़ाफ़ी ज़रूरतों के लिए एक नज़्म

अनवर सेन रॉय

अपने लिए एक नौहा

अनवर सेन रॉय

रुख़ से पर्दा उठा दे ज़रा साक़िया बस अभी रंग-ए-महफ़िल बदल जाएगा

अनवर मिर्ज़ापुरी

मेरी पहली नज़्म

अनवर मसूद

देखा जो मर्ग तो मरना ज़ियाँ न था

अनवर देहलवी

सितम सहने की तय्यारी भी कोई चीज़ होती है

अनुभव गुप्ता

मैं और मेरी तन्हाई

अंजुम सलीमी

काग़ज़ था मैं दिए पे मुझे रख दिया गया

अंजुम सलीमी

इन दिनों ख़ुद से फ़राग़त ही फ़राग़त है मुझे

अंजुम सलीमी

दिल भर आया फिर भी राज़-ए-दिल छुपाना ही पड़ा

अंजुम मानपुरी

पल भर उसे रुला कर देख

अंजुम लुधियानवी

हँसी में टाल तो देता हूँ अक्सर

अंजुम ख़याली

चाँद हम दोनों से मुशाबह है

अंजुम ख़लीक़

कहाँ तक और इस दुनिया से डरते ही चले जाना

अंजुम ख़लीक़

ज़हर लगता है ये आदत के मुताबिक़ मुझ को

अंजुम बाराबंकवी

जो शब भर आँसुओं से तर रहेगा

अंजुम आज़मी

रू-ए-गुल चेहरा-ए-महताब नहीं देखते हैं

अनीस अशफ़ाक़

जो आईने से तेरी जल्वा-सामानी नहीं जाती

अनीस अहमद अनीस

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