कारवां Poetry (page 1)

हवाओं में दिलों का कारवाँ है

अल्का मिश्रा

बच्चों का जुलूस

बलराज कोमल

किसी की सदा

इब्न-ए-सफ़ी

नद्दी ये जैसे मौज में दरिया से जा मिले

जानाँ मलिक

यौम-ए-बर्क़

बिर्ज लाल रअना

हर वो हंगामा ना-गहाँ गुज़रा

जिस राह से उठा हूँ वहीं बैठ जाऊँगा

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

गुम-कर्दा-राह ख़ाक-बसर हूँ ज़रा ठहर

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

हम कहाँ आ गए

ज़ुबैर रिज़वी

क्यूँ ऐ ग़म-ए-फ़िराक़ ये क्या बात हो गई

ज़ेहरा निगाह

दिन का कर्ब

ज़ाहिदा ज़ैदी

वो बहर-ओ-बर में नहीं और न आसमाँ में है

ज़ाहिद चौधरी

जब आशिक़ी में मेरा कोई राज़-दाँ नहीं

ज़ाहिद चौधरी

वो महफ़िलें वो मिस्र के बाज़ार क्या हुए

ज़हीर काश्मीरी

वो झूटा इश्क़ है जिस में फ़ुग़ाँ हो

ज़हीर देहलवी

दिल गया दिल का निशाँ बाक़ी रहा

ज़हीर देहलवी

उसी से आए हैं आशोब आसमाँ वाले

ज़फ़र इक़बाल

मिरे निशान बहुत हैं जहाँ भी होता हूँ

ज़फ़र इक़बाल

बस एक बार किसी ने गले लगाया था

ज़फ़र इक़बाल

अजब कोई ज़ोर-ए-बयाँ हो गया हूँ

ज़फ़र इक़बाल

ये अहद क्या है कि सब पर गिराँ गुज़रता है

ज़फ़र अज्मी

वो मेरी जान है दिल से कभी जुदा न हुआ

यूसुफ़ ज़फ़र

मुसाफ़िरों के ये वहम-ओ-गुमाँ में था ही नहीं

याक़ूब तसव्वुर

आप अपना निशाँ नहीं मा'लूम

याक़ूब अली आसी

दरमाँदा

वज़ीर आग़ा

चलो माना हमीं बे-कारवाँ हैं

वज़ीर आग़ा

नसीम-ए-सुब्ह यूँ ले कर तिरा पैग़ाम आती है

वासिफ़ देहलवी

नहीं मालूम कितने हो चुके हैं इम्तिहाँ अब तक

वासिफ़ देहलवी

कभी दर्द-आश्ना तेरा भी क़ल्ब शादमाँ होगा

वासिफ़ देहलवी

ऐ हम-दमाँ भुलाओ न तुम याद-ए-रफ़्तगाँ

वलीउल्लाह मुहिब

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