कारवां Poetry (page 2)

कुफ़्र मोमिन है न करना दिलबराँ से इख़्तिलात

वली उज़लत

ख़ुनुक-जोशी न करते जूँ सबा गर ये बुताँ हम से

वली उज़लत

सहे ग़म पए रफ़्तगाँ कैसे कैसे

वाजिद अली शाह अख़्तर

ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

तिरे आशुफ़्ता से क्या हाल-ए-बेताबी बयाँ होगा

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

ज़िंदगी

वहीदुद्दीन सलीम

रौशन हों दिल के दाग़ तो लब पर फ़ुग़ाँ कहाँ

वहीदा नसीम

हर एक गाम पे सज्दा यहाँ रवा होगा

वहीदा नसीम

सफ़ा मर्वा

वहीद क़ुरैशी

क्या ख़ला आसमान था पहले

विशाल खुल्लर

ज़मीं से आसमाँ तक आसमाँ से ला-मकाँ तक है

वहशी कानपुरी

वही हादसों के क़िस्से वही मौत की कहानी

वफ़ा बराही

निगाहें नीची रखते हैं बुलंदी के निशाँ वाले

तुर्फ़ा क़ुरैशी

दिन में सूरज है मिरी महरूमियों का तर्जुमाँ

तिश्ना बरेलवी

छब्बीस जनवरी

तिलोकचंद महरूम

मुझे ज़िंदगी से ख़िराज ही नहीं मिल रहा

तारिक़ नईम

दर्द-ए-दिल को दास्ताँ-दर-दास्ताँ होने तो दो

तल्हा रिज़वी बारक़

शिकवा न हो तसलसुल-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ रहे

तजम्मुल हुसैन अख़्तर

हर इक दाग़-ए-दिल शम्अ' साँ देखता हूँ

ताबिश देहलवी

आग़ाज़-ए-गुल है शौक़ मगर तेज़ अभी से है

ताबिश देहलवी

कभी कभी तिरी चाहत पे ये गुमाँ गुज़रा

सय्यदा शान-ए-मेराज

कैफ़ियत ही कैफ़ियत में हम कहाँ तक आ गए

सय्यद मुबीन अल्वी ख़ैराबादी

दिल की धड़कन थम गई दर्द-ए-निहाँ बढ़ता गया

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

शहर में साएबाँ बहुत से हैं

सय्यद मेराज जामी

ख़ाक-दाँ को हासिल-ए-ज़ौक़-ए-नज़र समझा था मैं

सय्यद मेराज जामी

गंगा जी

सुरूर जहानाबादी

न किसी को फ़िक्र-ए-मंज़िल न कहीं सुराग़-ए-जादा

सुरूर बाराबंकवी

मौसम-ए-गुल कुंज-ए-गुलशन निकहत-ए-गेसू न हो

सुलतान रशक

न ढलती शाम न ठंडी सहर में रक्खा है

सुलेमान ख़ुमार

तिरे आते ही सब दुनिया जवाँ मालूम होती है

सिकंदर अली वज्द

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