पत्र Poetry (page 3)

इक हवेली हूँ उस का दर भी हूँ

तहज़ीब हाफ़ी

तो तय हुआ ना कि जब भी लिखना रुतों के सारे अज़ाब लिखना

ताहिर तोनस्वी

रंग क्या अजब दिया मेरी बेवफ़ाई को

ताहिर अदीम

बुझ रही है आँख ये जिस्म है जुमूद में

ताहिर अदीम

नहीं तुम मानते मेरा कहा जी

ताबाँ अब्दुल हई

मैं हो के तिरे ग़म से नाशाद बहुत रोया

ताबाँ अब्दुल हई

हो रूह के तईं जिस्म से किस तरह मोहब्बत

ताबाँ अब्दुल हई

आई बहार शोरिश-तिफ़लाँ को क्या हुआ

ताबाँ अब्दुल हई

मुझे है फ़िक्र ख़त भेजा है जब से उस गुल-ए-तर को

तअशशुक़ लखनवी

सू-ए-दयार ख़ंदा-ज़न वो यार-ए-जानी फिर गया

तअशशुक़ लखनवी

कब अपनी ख़ुशी से वो आए हुए हैं

तअशशुक़ लखनवी

दिल जल के रह गए ज़क़न-ए-रश्क-ए-माह पर

तअशशुक़ लखनवी

बे दिए ले उड़ा कबूतर ख़त

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

वही गुल है गुलिस्ताँ में वही है शम्अ' महफ़िल में

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

तेरे दर से मैं उठा लेकिन न मेरा दिल उठा

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

ले के अपनी ज़ुल्फ़ को वो प्यारे प्यारे हाथ में

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

बे-दिए ले उड़ा कबूतर ख़त

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

अब इस से और इबारत नहीं कोई सादी

सय्यद तम्जीद हैदर तम्जीद

हाल-ए-बेदारी में रह कर भी मैं ख़्वाबों में रहा

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

इस क़दर ग़ौर से देखा है सरापा उस का

सय्यद काशिफ़ रज़ा

हमारे ख़्वाब कुछ इनइकास लगता है

सय्यद फ़ज़लुल मतीन

बदल के हम ने तरीक़ा ख़त-ओ-किताबत का

सय्यद आरिफ़ अली

अजब सी बद-हवासी छा रही है

सुनील कुमार जश्न

तेरी आँखों पे घने ख़्वाबों का पहरा हूँ मैं

सुलतान सुबहानी

अपने ही आप में असीर हूँ मैं

सुलैमान अहमद मानी

अजनबी ख़त-ओ-ख़ाल

सूफ़ी तबस्सुम

अपनी गुमशुदगी की अफ़्वाहें मैं फैलाता रहा

सुबोध लाल साक़ी

दुश्मनी में ही सही वो ये करम करता रहा

सुभाष पाठक ज़िया

तुझ पर फ़िदा हैं सारे हुस्न-ओ-जमाल वाले

सिराज औरंगाबादी

तेरे अबरू की अजब बैत है हाली ऐ शोख़

सिराज औरंगाबादी

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