सपना Poetry (page 59)

नफ़स नफ़स न कहीं जाए राएगाँ अपना

हबीब राहत हबाब

चाँदनी छुपती है तकयों के तले आँखों में ख़्वाब

हबीब मूसवी

शराब पी जान तन में आई अलम से था दिल कबाब कैसा

हबीब मूसवी

शब को नाला जो मिरा ता-ब-फ़लक जाता है

हबीब मूसवी

याद जो आए ख़ुद शरमाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने

हबीब आरवी

कौन सी मंज़िल है जो बे-ख़्वाब आँखों में नहीं

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

तिरी उमीदों का साथ देगी इनायत-ए-बर्ग-ओ-बार कब तक

गुलज़ार बुख़ारी

तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं

गुलज़ार

एक ही ख़्वाब ने सारी रात जगाया है

गुलज़ार

एक ख़्वाब

गुलज़ार

देखो आहिस्ता चलो

गुलज़ार

दस्तक

गुलज़ार

फूल ने टहनी से उड़ने की कोशिश की

गुलज़ार

गुलों को सुनना ज़रा तुम सदाएँ भेजी हैं

गुलज़ार

शब डूब गई

गुलनाज़ कौसर

न पूछ ऐ मिरे ग़म-ख़्वार क्या तमन्ना थी

गुलनार आफ़रीन

ज़िंदगी की रौशनी के इस्तिआरे ख़्वाब हैं

गुफ़्तार ख़याली

क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

भूला है बा'द-ए-मर्ग मुझे दोस्त याँ तलक

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

नज़्म

गोपाल मित्तल

तेरे मेरे ख़्वाब जुदा

गिरिजा व्यास

किसी से ख़्वाब का चर्चा न करना

गिरिजा व्यास

आँखों में नए रंग सजाने नहीं उतरे

गिरिजा व्यास

मुझे उस नींद के माथे का बोसा हो इनायत

ग़ज़ाला शाहिद

दिए से लौ नहीं पिंदार ले कर जा रही है

ग़ज़ाला शाहिद

ताबीरों से बंद क़बा-ए-ख़्वाब खुले

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

कहीं कहीं से पुर-असरार हो लिया जाए

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

बर्क़ का ठीक अगर निशाना हो

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

सोचा है तुम्हारी आँखों से अब मैं उन को मिलवा ही दूँ

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

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