भगवान Poetry (page 73)

जुज़ तिरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे

अहमद फ़राज़

इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ

अहमद फ़राज़

हर कोई दिल की हथेली पे है सहरा रक्खे

अहमद फ़राज़

गिला फ़ुज़ूल था अहद-ए-वफ़ा के होते हुए

अहमद फ़राज़

ग़ैरत-ए-इश्क़ सलामत थी अना ज़िंदा थी

अहमद फ़राज़

दुख फ़साना नहीं कि तुझ से कहें

अहमद फ़राज़

चले थे यार बड़े ज़ोम में हवा की तरह

अहमद फ़राज़

चाक-पैराहनी-ए-गुल को सबा जानती है

अहमद फ़राज़

अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रक्खा है

अहमद फ़राज़

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें

अहमद फ़राज़

अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम

अहमद फ़राज़

मैं तिरी मानता लेकिन जो मिरा दिल है ना

अहमद अता

बिकता रहता सर-ए-बाज़ार कई क़िस्तों में

अहमद अशफ़ाक़

जितनी हम चाहते थे उतनी मोहब्बत नहीं दी

अहमद अशफ़ाक़

ये कैसे बाल खोले आए क्यूँ सूरत बनी ग़म की

आग़ा शायर

उन्स अपने में कहीं पाया न बेगाने में था

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

रोने से जो भड़ास थी दिल की निकल गई

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

मस्कन वहीं कहीं है वहीं आशियाँ कहीं

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

जिस ने तुझे ख़ल्वत में भी तन्हा नहीं देखा

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

गिरी गिर कर उठी पलटी तो जो कुछ था उठा लाई

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

सब कुछ ख़ुदा से माँग लिया तुझ को माँग कर

आग़ा हश्र काश्मीरी

गो हरम के रास्ते से वो पहुँच गए ख़ुदा तक

आग़ा हश्र काश्मीरी

सू-ए-मय-कदा न जाते तो कुछ और बात होती

आग़ा हश्र काश्मीरी

क्या ख़ुदा हैं जो बुलाएँ तो वो आ ही न सकें

आग़ा हज्जू शरफ़

तिरी हवस में जो दिल से पूछा निकल के घर से किधर को चलिए

आग़ा हज्जू शरफ़

तिरे वास्ते जान पे खेलेंगे हम ये समाई है दिल में ख़ुदा की क़सम

आग़ा हज्जू शरफ़

सलफ़ से लोग उन पे मर रहे हैं हमेशा जानें लिया करेंगे

आग़ा हज्जू शरफ़

रहा करते हैं यूँ उश्शाक़ तेरी याद ओ हसरत में

आग़ा हज्जू शरफ़

जवानी आई मुराद पर जब उमंग जाती रही बशर की

आग़ा हज्जू शरफ़

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