आपका Poetry (page 23)

ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

फ़ज़ा में वहशत-ए-संग-ओ-सिनाँ के होते हुए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

यहाँ से चारों तरफ़ रास्ते निकलते हैं

इदरीस बाबर

मैं उसे सोचता रहा या'नी

इदरीस बाबर

उस की इक दुनिया हूँ मैं और मेरी इक दुनिया है वो

इब्राहीम अश्क

मोहब्बतों में जो मिट मिट के शाहकार हुआ

इब्राहीम अश्क

दैर-ओ-हरम में दश्त-ओ-बयाबान-ओ-बाग़ में

इब्राहीम होश

बड़े ग़ज़ब का है यारो बड़े अज़ाब का ज़ख़्म

इब्न-ए-सफ़ी

फिर शाम हुई

इब्न-ए-इंशा

फ़र्ज़ करो

इब्न-ए-इंशा

दिल-आशोब

इब्न-ए-इंशा

ऐ मतवालो! नाक़ों वालो!!

इब्न-ए-इंशा

लोग हिलाल-ए-शाम से बढ़ कर पल में माह-ए-तमाम हुए

इब्न-ए-इंशा

इस शहर के लोगों पे ख़त्म सही ख़ु-तलअ'ती-ओ-गुल-पैरहनी

इब्न-ए-इंशा

हमें तुम पे गुमान-ए-वहशत था हम लोगों को रुस्वा किया तुम ने

इब्न-ए-इंशा

फ़रोग़-ए-दीदा-वरी का ज़माना आया है

हुरमतुल इकराम

तअल्लुक़ की नई इक रस्म अब ईजाद करना है

हुमैरा राहत

कभी तो सेहन-ए-अना से निकले कहीं पे दश्त-ए-मलाल आया

हिलाल फ़रीद

ज़िंदगी से मिली सौग़ात ये तन्हाई की

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

ज़माना देखता है हंस के चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ मेरी

हीरा लाल फ़लक देहलवी

ये जज़्बा-ए-तलब तो मिरा मर न जाएगा

हयात लखनवी

पुतली की एवज़ हूँ बुत-ए-राना-ए-बनारस

हातिम अली मेहर

का'बा-ओ-बुत-ख़ाना वालों से जुदा बैठे हैं हम

हातिम अली मेहर

हम से किनारा क्यूँ है तिरे मुब्तला हैं हम

हातिम अली मेहर

गुल-बाँग थी गुलों की हमारा तराना था

हातिम अली मेहर

दिल में जो मोहब्बत की रौशनी नहीं होती

हस्तीमल हस्ती

सियहकार थे बा-सफ़ा हो गए हम

हसरत मोहानी

निगाह-ए-यार जिसे आश्ना-ए-राज़ करे

हसरत मोहानी

न सूरत कहीं शादमानी की देखी

हसरत मोहानी

बुरा न माने तो इक बात पूछता हूँ मैं

हसरत अज़ीमाबादी

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