खुशी Poetry (page 15)

उन निगाहों को अजब तर्ज़-ए-कलाम आता है

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

वफ़ा की तश्हीर करने वाला फ़रेब-गर है सितम तो ये है

गुलज़ार बुख़ारी

उठो गले से लिपट जाओ फिर निखर लेना

गुलशनुद्दौला बहार

मिले भी दोस्त तो इस तर्ज़-ए-बे-दिली से मिले

गुलाम जीलानी असग़र

चराग़ से कभी तारों से रौशनी माँगे

गुहर खैराबादी

बे-ख़बर कैसे हो रहे हो तुम

गुहर खैराबादी

क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

जब चले जाएँगे हम लौट के सावन की तरह

गोपालदास नीरज

फ़क़त इक शग़्ल बेकारी है अब बादा-कशी अपनी

गोपाल मित्तल

हर घड़ी बीमार हो कर रह गई

गोपाल कृष्णा शफ़क़

कोई इक ज़ाइक़ा नहीं मिलता

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

फिर तो इस बे-नाम सफ़र में कुछ भी न अपने पास रहा

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ख़त ज़मीं पर न ऐ फ़ुसूँ-गर काट

ग़ुलाम मौला क़लक़

जो दिलबर की मोहब्बत दिल से बदले

ग़ुलाम मौला क़लक़

दोस्ती उस की दुश्मनी ही सही

ग़ुलाम मौला क़लक़

ढूँड लाया हूँ ख़ुशी की छाँव जिस के वास्ते

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरी विरासत में जो भी कुछ है वो सब इसी दहर के लिए है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

एक घर अपने लिए तय्यार करना है मुझे

ग़ुलाम हुसैन साजिद

हाथ से मेरे वो पीता नहीं मुद्दत से शराब

ग़मगीन देहलवी

मैं ने हर-चंद कि उस कूचे में जाना छोड़ा

ग़मगीन देहलवी

तिरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना

ग़ालिब

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

ग़ालिब

वो आ के ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे

ग़ालिब

फिर इस अंदाज़ से बहार आई

ग़ालिब

बंदों का मिज़ाज हम ने देखा

गौहर होशियारपुरी

दिल-ए-ग़म-ज़दा पे गुज़र गया है वो हादसा कि मिरे लिए

गणेश बिहारी तर्ज़

रह-ए-इश्क़ में ग़म-ए-ज़िंदगी की भी ज़िंदगी सफ़री रही

गणेश बिहारी तर्ज़

दोस्ती अपनी जगह और दुश्मनी अपनी जगह

गणेश बिहारी तर्ज़

दोस्ती अपनी जगह और दुश्मनी अपनी जगह

गणेश बिहारी तर्ज़

अहल-ए-दिल के वास्ते पैग़ाम हो कर रह गई

गणेश बिहारी तर्ज़

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