कोई इक ज़ाइक़ा नहीं मिलता
ग़म में शामिल ख़ुशी सी रहती है
Rahat Indori
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Jaun Eliya
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(776) Peoples Rate This
कहीं कहीं से पुर-असरार हो लिया जाए
बात बढ़ती गई आगे मिरी नादानी से
न जाने क़ैद में हूँ या हिफ़ाज़त में किसी की
दिल ने तमन्ना की थी जिस की बरसों तक
कहने सुनने का अजब दोनों तरफ़ जोश रहा
अब और देर न कर हश्र बरपा करने में
हुस्न-ए-अमल में बरकतें होती हैं बे-शुमार
किसी की राह में आने की ये भी सूरत है
अपनी क़िस्मत का बुलंदी पे सितारा देखूँ
कितना भी रंग-ओ-नस्ल में रखते हों इख़्तिलाफ़
देखने सुनने का मज़ा जब है
दूसरा कोई तमाशा न था ज़ालिम के पास