अब और देर न कर हश्र बरपा करने में
मिरी नज़र तिरे दीदार को तरसती है
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बढ़ा जब उस की तवज्जोह का सिलसिला कुछ और
मौजूदगी का उस की असर होने लगा है
चले थे जिस की तरफ़ वो निशान ख़त्म हुआ
दिल ने तमन्ना की थी जिस की बरसों तक
कोई इक ज़ाइक़ा नहीं मिलता
अब मिरे गिर्द ठहरती नहीं दीवार कोई
हर एक साँस मुझे खींचती है उस की तरफ़
वही साहिल वही मंजधार मुझ को
शक्ल सहरा की हमेशा जानी-पहचानी रहे
उस ने जब दरवाज़ा मुझ पर बंद किया
रख दिया वक़्त ने आईना बना कर मुझ को
मुझे ग़ुबार उड़ाता हुआ सवार लगा