अब जो आज़ाद हुए हैं तो ख़याल आया है
कि हमें क़ैद भली थी तो सज़ा कैसी थी
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मिरी गिरफ़्त में है ताएर-ए-ख़याल मिरा
राह से मुझ को हटा कर ले गया
कैसा इंसाँ तरस रहा है जीने को
मौजूदगी का उस की असर होने लगा है
दिल ने तमन्ना की थी जिस की बरसों तक
जो उस तरफ़ से इशारा कभी किया उस ने
पहले चिंगारी उड़ा लाई हवा
नहीं है बहर-ओ-बर में ऐसा मेरे यार कोई
किसी ने भेज कर काग़ज़ की कश्ती
ये लोग किस की तरफ़ देखते हैं हसरत से
साँसों के आने जाने से लगता है